420 सुनते ही लोगों के सामने जो सबसे पहली चीज आती हैं वह है ठगना या धोखेबाजी. लेकिन हमारे देश में मध्यप्रदेश के एक व्यक्ति ने इस नाम का मतलब बदल दिया. जी हां उस व्यक्ति ने अपनी मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक एक ऐसा ब्रांड बना दिया, जो आजकल ग्लोबल लेवल पर चर्चित है. और यह ब्रांड कोई छोटा ब्रांड नहीं है बल्कि 100 करोड़ का ब्रांड हैं. इस ब्रांड को बनाने वाले एक व्यक्ति जिसका नाम ‘हुकुमचंद अग्रवाल’ है, वे अपने ब्रांड को इतनी ऊंचाई तक कैसे ले गए, उनकी सफलता की कहानी आज हम इस लेख में आपको बताने जा रहे हैं. इसे अंत तक पढ़िये.
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कौन हैं हुकुमचंद अग्रवाल
420 ब्रांड बनाने वाले हुकुमचंद मध्यप्रदेश के मल्हारगंज में रहने वाले एक व्यापारी हैं जिनका पापड़, नमकीन और इंस्टेंट फ़ूड बनाने का बिज़नेस है. इन्होने इस काम की शुरुआत अपने घर से ही शुरू की थी. किन्तु आज इनके ब्रांड की फैक्ट्री सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि इसके अलावा 5 अन्य देशों में भी मौजूद हैं.
ब्रांड का नाम 420 क्यों रखा
हुकुमचंद जी ने अपने ब्रांड का नाम 420 इसलिए रखा क्योंकि वे नाम से बहुत प्रभावित हो गए थे. दरअसल एक बार घर पर जब वे पापड़ का काम रहे थे, उस दौरान टीवी पर राजकपूर की फिल्म ‘श्री 420’ आ रही थी. फिल्म का शो खत्म होने के बाद उनकी जिन्दगी बदल गई. फिल्म में राज कपूर के ऊपर 420 का आरोप लगा था, किन्तु वह ईमानदारी के साथ काम करते हुए आगे बढ़े और एक अपनी एक नई पहचान बना ली थी. इसी से प्रभावित हो कर हुकुमचंद जी ने अपने ब्रांड का नाम 420 रखने का फैसला किया.
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सफलता की कहानी
420 ब्रांड के ओनर हुकुमचंद अग्रवाल की सफलता की कहानी सन 1962 से शुरू हुई जब वे केवल 16 साल के थे. उनके घर की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी. वे उस समय किसी दुकान में नौकरी किया करते थे. उनके घर पर उनकी दादी और माता पापड़ बेल पैसे कमाया करती थी. हुकुमचंद जी ने अपनी दादी और माता के साथ पापड़ बेलने के काम शुरू कर दिया. वे पहले पापड़ की फैक्ट्री में जाकर पापड़ वाले आटे की लोई लेकर आते थे और फिर इसे घर पर बेला करते थे. उन्होंने अपने बनाये हुए पापड़ को 420 नाम दिया, और मल्हारगंज में ही स्थित कांच मंदिर के सामने एक छोटी सी किराये की दुकान ली वहां अपनी दुकान का नाम ‘420 के पापड़’ रखा. यह देख सभी ने उनका बहुत उपहास किया. उनकी दुकान पर नाम पढ़कर कोई नहीं आता था.
फिर उन्होंने अपने बनाये हुए पापड़ को विभिन्न दुकानदारों को सप्लाई करने का काम शुरू किया. उनके बनाएं हुए पापड़ लोगों को बहुत पसंद तो आयें, लेकिन ब्रांड नाम अच्छा नहीं होने की वजह से कोई दूकानदार उनके पापड़ को लेने के लिए तैयार नहीं होता था. वे अपने घर के खाने के लिए ही पापड़ ले लिया करते थे. उनका कहना था कि यदि वे अपनी दुकान में 420 नाम के पापड़ रखेंगे तो लोग उनकी दुकान को ही 420 समझने लगेंगे. और उनके ग्राहक आना बंद हो जायेंगे. वे उन्हें अपने पापड़ का नाम बदलने के लिए कहते थे.
लेकिन हुकुमचंद जी ने अपनी ईमानदार सोच के चलते इसी नाम को बनाएं रखने का निश्चय किया. उन्होंने हार नहीं मानी, वे अपने पापड़ लोगों के घरों में एवं शादी – पार्टियों में बेचने लगे. धीरे धीरे पूरे इंदौर में उनके पापड़ के चर्चे होने लगे. सभी को 420 ब्रांड के पापड़ का स्वाद बहुत पसंद आया. और फिर जो दूकानदार उनसे माल लेने के लिए मना कर दिए थे. वे भी अब उनके इस ब्रांड को पसंद करने लगे थे. अपनी दुकान में उनके ब्रांड के नाम का बोर्ड लगाने के लिए अनुमति मांगने लगे थे. अपने ब्रांड को इस मुकाम तक पहुँचाने में हुकुमचंद जी की 54 साल की मेहनत थी.
वर्तमान में 420 कंपनी
हुकुमचंद जी के इस करोबार में उनके बेटे नारायण, भतीजे राजेश और अनूप भी शामिल हैं. वर्तमान में वे ही इस कारोबार को संभाल रहे हैं. 420 ब्रांड में आज 35 तरह के पापड़ के साथ ही नमकीन, इंस्टेंट फ़ूड और मिठाई मिला करके कुल 100 तरह के प्रोडक्ट बेचे जाते हैं. भारत में इस ब्रांड के का नेटवर्क 20 राज्यों में फैला हुआ है. और 5 देशों में ये अपने प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट करते हैं. इतना ही नहीं नमकीन और पापड़ उद्योग में काम आने वाली मशीनों का निर्माण करके यह कंपनी फ़ूड प्रोसेसिंग मशीनरीज के क्षेत्र में भी आगे बढ़ कर अपना नाम कमा रही है. इस तरह से यह आज के समय में 100 करोड़ की कंपनी बन चुकी है. हुकुमचंद जी की उम्र आज 73 साल हैं और वे आज भी इस करोबार से जुड़े हैं 15 घंटे फैक्ट्री में काम देखते हैं. इस कारोबार में उनकी तीसरी पीढ़ी भी शामिल हो गई है.
हुकुम चंद जी के पास आज 125 से भी ज्यादा गाड़ियाँ हैं और सभी गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन नंबर, मोबाइल नंबर, लैडलाइन नंबर और कंपनी का रेट कार्ड सभी में 420 नंबर शामिल है. 420 नंबर से उनका पूरा परिवार बहुत गर्व करता है. यह कह सकते हैं कि उनके लिए यह नंबर लकी नंबर है.
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सफलता का मंत्र
हुकुमचंद जी की इस सफलता का मूल मंत्र उनका ईमानदारी के साथ किया जाने वाला काम है. वे कहते हैं कि भले ही नाम कुछ भी हो उसका काम अच्छा होना चाहिये. अपनी मेहनत, ईमानदारी एवं गुणवत्ता से कोई भी काम करने से ही सम्मान मिलता है. हुकुमचंद जी के बेटे नारायण का कहना हैं कि वे अपने 100 करोड़ के टर्नओवर को 420 करोड़ तक पहुँचाना चाहते हैं और इसे उपहार स्वरुप अपने पिता को समर्पित करना चाहते हैं.
अतः इस सफलता की कहानी से यह प्रेरणा मिलती है कि नाम से कोई मतलब नहीं होता, बस काम अच्छा होना चाहिए.
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